जानिए क्यों विख्यात हैं सप्त पुरियाँ

जानिए क्यों विख्यात हैं  सप्त पुरियाँ  

सनातन धर्म में सप्त पुरियों को मोक्षदायिनी बताया गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार  अयोध्या, मथुरा,मायापुरी अर्थात हरिद्वार, काशी, कांची,अवंतिकापुरी  या उज्जैयिनी और  द्वारिका को सप्तपुरी  बताया गया है-

अयोध्या मथुरा माया काशी कांञ्ची अवंतिका।

पुरी द्वारवती चैव सत्तैता मोक्षदायिका ।। (गरुड पुराण) 
  इन सातों नगरों  को सनातन धर्म में विशेष महत्त्व है और इनके दर्शन मात्र से व्यक्ति को मोक्ष मिल जाता है।  आज हम जानेंगे कि इन सातों नगरों की ऐसी क्या विशेषता है कि इन्हें सनातन धर्म में इतनी  ख्याति मिली है। 

1. अयोध्या:  उत्तर प्रदेश में स्थित अयोध्या एक प्राचीन शहर है।अयोध्या नगरी पवित्र सरयु नदी के ट पर बसी हुई नगरी है। अयोध्यापुरी की महिमा का अनुमान इस प्रसिद्ध श्लोक से लगा सकते हैं-

विष्णोः पादमवन्तिकां गुणवतीं मध्ये च काञ्चीपुरीन्
नाभिं द्वारवतीस्तथा च हृदये मायापुरीं पुण्यदाम्।
ग्रीवामूलमुदाहरन्ति मथुरां नासाञ्च वाराणसीम्
एतद्ब्रह्मविदो वदन्ति मुनयोऽयोध्यापुरी मस्तकम्॥

अर्थ: विष्णु के चरण पुण्य अवंतिका, कांची मध्य में, नाभि क्षेत्र द्वारिका, हृदय मायापुरीगले का मूल मथुरा और नासिका वाराणसी है। वेदों को जानने वाले ब्रह्मविद कहते हैं कि अयोध्या उनका( भगवान ) मस्तक है। 

माना जाता है कि सूर्यवंशी वैवस्वत मनु महाराज  ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया था इन्हीं के पुत्र इक्षाकु के वंश में राजा दशरथ हुए । जिनके पुत्र बनकर भगवान नारायण ने राम रूप में अपनी समस्त कलाओं के साथ अवतार लिया और अयोध्या में बाल लीला की। 

Ayodhyaa

कहते हैं कि भगवान राम को अयोध्या इतनी पसंद थी कि लंका विजय के बाद लंका की सुंदरता और ऐश्वर्य़ से प्रसन्न होकर  लक्ष्मण ने जब श्री राम से वहीं रुक जाने का अनुरोध किया तो राम जी अयोध्या को याद कर भावुक हो उठे । उन्होंने लक्ष्मण से कहा-" जननि जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।"  राम जी द्वारा अपनी लीला संवरण करते समय अयोध्या वासी व्याकुल होकर उनके ही साथ चलने को उद्धत हो गए। तब उनके प्रेम को देखते हुए भगवान राम ने अयोध्यावासियों को साकेत धाम आने का आशीर्वाद दिया। तभी से मान्यता है कि अयोध्या जी में निवास करने और इसके दर्शन करने वालों को मोक्ष (साकेत धाम) प्राप्त होता है ।

2. मथुरा: मथुरा  ब्रज मंडल क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह उत्तर प्रदेश का एक मुख्य तीर्थ है। मथुरा नगरी यमुना नदी के किनारे बसी हुई नगरी है। इसका मुख्य संबंध भगवान कृष्ण से है।  यह कृष्ण के नाना उग्रसेन का राज्य था जिनको गद्दी से हटा कर उनका पुत्र कंस राजा बन गया था

   Krishna Janma Bhumi Temple Mathura

 यही काल कोठरी में भगवान कृष्ण ने वृष्णीवंश में देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में जन्म लिया। व्रज क्षेत्र में अनेक लीलाएँ करते हुए कृष्ण लगभग ग्यारह वर्ष की आयु में मथुरा आए और कंस वध किया। भगवान कृष्ण से संबंध रखने के कारण मथुरा का विशेष महत्त्व है और इस नगरी के दर्शन करने वालों को मोक्ष (वैकुंठप्राप्त होता है ।मथुरा देवी यहाँ की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं।  

3. मायापुरी: प्राचीन ग्रंथों में मायापुरी नाम से उल्लिखित नगर अब हरद्वार  या हरिद्वार नाम से विख्यात है। हरिद्वार का संबंध भगवान शिव और विष्णु दोनों से ही है। यह नगर उत्तराखंड में स्थित है। 

A Serene view of Haridwar at Har ki paudi 

गंगा नदी के तट पर स्थित यह नगरी अत्यंत पवित्र मानी जा्ती है और सदियों से स्वर्गारोहण की प्रथम सीढ़ी मानी जाती रही है। पद्मपुराण में इस नगर की प्रसंशा करते हुए लिखा गया है-

हरिद्वारे यदा याता विष्णु पादोदकी तदा। 

तदेव तीर्थं प्रवरं देवानामपि दुर्लभम्॥

तत्तीर्थे च नरः स्नात्वा हरि दृष्टवा विशेषतः।

प्रदक्षिणं ये कुर्वंति न चैते दुःखभागिन:॥

तीर्थानां प्रवरं तीर्थं चतुर्वर्ग प्रदायकं‍।

कलौ धर्मकरं पुंसा मोक्षदं चार्थदं तथा॥

हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी मायादेवी हैं जिनका मंदिर नगर के मध्य में स्थित है। इनके दर्शन के बिना हरिद्वार यात्रा पूरी नहीं समझी जाती। 

4. काशी:  सनातन धर्म में काशी का विशेष महत्त्व है। उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के तट पर बसा यह नगर अत्यंत प्राचीन है। मान्यता है कि काशी पृथ्वी पर होते हुए भी धरती से इसका संबंध नहीं है। शास्त्रों के अनुसार यह नगरी शिव के त्रिशूल पर स्थित है। भगवान शिव ने काशी को मोक्ष प्रदायिनी होने का आशीर्वाद दिया। 

 काशी की महिमा गाते हुए शास्त्र कहते हैं-

यत्र कुत्रापिवाकाश्यांमरणेसमहेश्वर:।
जन्तोर्दक्षिणकर्णेतुमत्तारंसमुपादिशेत्॥

काशी में कहीं पर भी मृत्यु के समय भगवान विश्वेश्वर (विश्वनाथजी) प्राणियों के दाहिने कान में तारक मन्त्र का उपदेश देते हैं। तारकमन्त्र सुन कर जीव भव-बन्धन से मुक्त हो जाता है। यह मान्यता है कि केवल काशी ही सीधे मुक्ति देती है, जबकि अन्य तीर्थस्थान काशी की प्राप्ति कराके मोक्ष प्रदान करते हैं। 

काशी की महिमा का वृहद उल्लेख स्कन्दपुराण के काशीखंड में है।काशी में भगवान शिव विश्वनाथ रूप धारण करते हैं जबकि माता पार्वती अन्नपूर्णा के रूप मे स्थित हैं । वे ही इस क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में माता अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से कोई भूखा नही रहता।  

5. कांची : कांची या कांचीपुरम तमिलनाडु राज्य में स्थित प्राचीन नगर है।कांचीपुरम को दक्षिण की काशी भी कहा जाता है। यह चेन्नई से 45 मील की दूरी पर दक्षिण–पश्चिम में स्थित है। मान्यता है कि यहाँ पर ब्रह्मा जी ने देवी की प्रसन्नता के लिए कठोर तपस्या की थी। ’क’ अर्थात ब्रह्मा द्वारा अर्चित अर्थात  पुजित  (क +आंची) होने के कारण यह स्थान ’कांची’ कहलाया। यहाँ कामाक्षी अम्मन नाम से  कामाक्षी  देवी का एक विशाल मंदिर भी है जो कि 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ कामाक्षी देवी के नाम का एक और अर्थ निकाला जाता है। देवी के तीन नेत्रों को क =ब्रह्मा,  आ= विष्णु और म =महेश्वर से जोड़कर भी देखा जाता है।

A View of Kamakshi Amman temple of Kanchi

इसके मंदिर के अतिरिक्त यह धर्म नगरी हरिहरात्मक नगरी भी है।इसलिए  यहाँ विष्णु और शिव के अनेक विशाल और  प्राचीन मंदिर हैं। कैलाश मंदिर एक प्रसिद्ध और दर्शनीय मंदिर है। कांचीपुरम वेगवती नदी के किनारे स्थित है ।  कांची के महात्म्य को इस श्लोक द्वारा समझा जा सकता है-

नारीषु रम्भा नगरेषु काञ्ची पुष्पेषु जातिः पुरुषेषु विष्णुः ।

अर्थात स्त्रियों में रंभा , नगरों में कांची, फूलों में चंपा और पुरुषों में विष्णु श्रेष्ठ हैं । 

पवित्र  नगरी कांची अपने प्राचीन वैभव और महत्ता को समेटे हुए शिव , ब्रह्मा, विष्णु, देवी और विनायक पूजा के मध्य समन्वय करती हुई निश्चय ही  दर्शनीय और मोक्षप्रदायिनी है। आदि शंकराचार्य जी का इस नगरी से विशेष लगाव था।  

6.अवंतिकापुरी : अवंतिका का अर्थ है सबकी रक्षा में समर्थ। सप्त नगरियों में इसे भी  मोक्षदायिनी  पुरियों में गिना गया है। वर्तमान में यह नगर उज्जैन नाम से जाना जाता है। अवंतिका  और उज्जैन के अतिरिक्त विशाला, प्रतिकल्पा कुमुदवती और अमरावती भी इस नगरी के अन्य प्राचीन नाम हैं।यह नगर मध्य प्रदेश में स्थित है। 

माना जाता है कि त्रिपुरासुर राक्षस को वध करने के लिए भगवान शिव ने यहीं तप कर भगवती दुर्गा से  ब्रह्मास्त्र प्राप्त किया था।  त्रिपुरासुर को जीतने अर्थात उज्जित करने के कारण बाद में यह नगरी उज्ज्यिनी या उज्जैन के नाम से विख्यात हुई। यहाँ भगवान शिव महाकाल रूप में विराजित हैं।  यहाँ पर विराजित शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं।  

Mahakaleshvar Bhagwan Shiva in Ujjain

यहाँ स्वयंभू शिव दक्षिणामुखी रूप में विराजित होने से ज्योतिषीय दृष्टि से  विशेष महत्त्व रखते हैं ।खगोलीय  दृष्टि से भी इस नगरी का विशेष महत्त्व है।   यह प्राचीन शहर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है । यह नगर महाराजा विक्रमादित्य की राजधानी  रहा।  सुप्रसिद्ध संस्कृत कवि कालीदास और वाणभट्ट ने इस शहर की सुंदरता  वर्णन अपने काव्य में किया है। 

अवंतिका पुरी की महिमा इसी बात से समझी जा सकती है कि स्कंद पुराण  में इसके नाम से पूरा अवंतिकाखंड ही लिखा गया है। अवंतिका नगरी का दर्शन करने से मोक्ष तो प्राप्त होता ही है । अकाल मृत्यु का भी नाश होता है। इसीलिए  भगवान महाकाल की प्रार्थना करता हुआ भक्त विभोर होकर कह उठता है : 

अवंतिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानां।

अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थे वंदे महाकालं महा सुरेशं॥

7. द्वारिकापुरी: द्वारका  गुजरात राज्य के अरब सागर  के पास स्थित नगर है।  यही क्षेत्र भगवान कृष्ण की कर्मभुमि भी रहा। यह वही स्थान है जहाँ गोमती  नदी अरब सागर में मिल जाती है। इस नगर में बहुत से द्वार होने के कारण इसका नाम द्वारका पड़ गया। कई पुराणों में द्वारिका नगरी का प्राचीन नाम स्वर्ण द्वारिका माना गया है क्योंकि इस नगरी में प्रवेश करने के लिए एक बड़ा स्वर्ण द्वार था। पौराणिक रूप से मान्यता है कि भगवान कृष्ण की मूल राजधानी उनके धरा धाम छोड़ते ही समुद्र में डूब गई। सिर्फ़ भगवान का मंदिर ही शेष रहा। भक्त इसी पवित्र स्थली के ्दर्शन करने  जाते हैं। भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका की गिनती चार धामों में भी होती है । 

Dwarikapuri Temple 

यहीं आदिशंकराचार्य भगवान ने  अपने पश्चिम्नाय मठ की स्थापना की।  यहाँ गोमती चक्र या चक्र तीर्थ , कैलाश कुंड , बेट द्वारका आदि अन्य प्रसिद्ध स्थली हैं और  भगवान कृष्ण की आठ पटरानियों के छोटे-छोटे मंदिर भी हैं।  भगवान शिव भी  इस पवित्र स्थली में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं जो बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। महाभारत और श्रीमद्‍ भागवतम्  के अतिरिक्त अनेक ग्रंथों में द्वारका का वर्णन और माहात्म्य बताया गया है। द्वारका भी उन सात प्राचीन नगरियों में से एक है जिनके दर्शन मोक्षप्रदायी हैं ।  

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