Dhan Ka Rahasya धन का रहस्य
Dhan Ka Rahasya धन का रहस्य
(लघु कथा)
किसी नगर में एक कृपण व्यापारी रहता था। उसने व्यापार द्वारा बहुत धन संचय किया। किंतु वह उस धन को जरा भी खर्च नहीं करता था । वह अक्सर पुराने कपड़े ही पहने रहता। वह बहुत ही साधारण भोजन करता।
वह अपने पुत्र और पत्नी को भी सभी तरह से सुखों से वंचित रखता। उसके कर्मचारी भी व्यापारी की कृपणता से दुखी थे। उसने कभी किसी को एक पैसा भी दान न दिया। सेठ स्वयं भी एक-एक पाई को दांत से पकड़ कर रहता और बहुत विचार कर ही धन खर्च करता। इस तरह उसके धन के भंडार भरते गए। किंतु उसके हृदय में संतुष्टि न थी। उसे चिंता थी कि उसके मरने के बाद कहीं उसके मेहनत से अर्जित धन नष्ट न हो जाए।
एक बार सेठ खिन्न होकर वन में चला गया। वहां उसे एक संन्यासी मिले। संन्यासी का हृदय आनंद से भरा था उन्हें किसी तरह की कोई चिंता न थी। उनका मस्तक सात्विक तेज से चमक रहा था। संन्यासी को देख कर सेठ बहुत प्रभावित हुआ। उस ने संन्यासी को प्रणाम किया और अपनी खिन्नता का कारण बताया।
सेठ की बात सुन कर संन्यासी उसे वन में ही एक ऊंचे पेड़ के पास ले गए। वहां एक मधुमक्खी का छत्ता लगा था । छत्ता शहद से लबालब भरा हुआ था। लेकिन दुर्भाग्य वश वहां की सारी मधुमक्खियां किसी बीमारी का शिकार हो खत्म हो चुकी थी। उस छत्ते तक किसी का भी पंहुचना असंभव था।
संन्यासी ने वह छत्रक सेठ को दिखाया। सेठ ने आश्चर्य चकित होते हुए कहा -" यदि यह छत्ता कुछ नीचे होता तो किसी अन्य के काम आ सकता था। मधुमक्खियों ने इतनी मेहनत की, किंतु यह न तो उनके काम आया और न उनकी संतानों के। अफसोस! अब सारा मधु नष्ट हो जाएगा।"
संन्यासी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया-"मुझे लगता है कि अब आपको भी अपनी खिन्नता का निवारण मिल गया होगा। धन की तीन ही गतियां हैं - या तो उसका उचित उपभोग किया जाए अथवा दान दिया जाए , जिससे वह जरूरतमंद लोगों तक पहुंच सके। अन्यथा वह काल के प्रभाव से नष्ट हो जाएगा। अत: जाओ! अपने परिवार और मित्रों के साथ आनंद से धन का उपभोग करो । अथवा योग्य व्यक्तियों को दान करो। भविष्य की चिंता में वर्तमान को नष्ट करना मूर्खता है।"
व्यापारी को संन्यासी की बात समझ आ गई। वह घर वापस लौट आया। उसके बदले हुए व्यवहार को देखकर उसका परिवार और कर्मचारी दोनों प्रसन्न थे।
लेखिका: कुसुम लता जोशी
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